दिल्ली, करोलबाग़। मनोरंजन मानव जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है। न केवल आज से, अपितु युगों - युगों से। हाँ, समय के साथ - साथ इसके तौर - तरीके तथा माध्यम बदलते गए। वर्तमान स्थिति में सिनेमा तथा ओटीटी प्लेटफार्म काफी लोकप्रिय हैं। लेकिन आपके जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि सिनेमा वगेरा को छोड़कर मनोरंजन का एक और माध्यम लोकप्रिय है। जी हाँ, हम बात कर रहे है नुक्कड़ नाटक की। जिसे अंग्रेजी में Street Play भी कहा जाता है। और आजकल नुक्कड़ नाटक (Street Play) न केवल मनोरंजन का साधन है , बल्कि विज्ञापन (Advertisement) का भी बहुत अच्छा साधन बन गया है। इस बात का अंदाजा आप इस तरह से लगा सकते है कि बड़ी - बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव के समय पर प्रचार करने के लिए इस माध्यम का सहारा लेते है।
नुक्कड़ नाटक |
Nukkad Natak (Street Play) in Hindi
अस्सी और नब्बे के दशक में भारत में नुक्कड़ नाटक का विस्फोट - सा हुआ। एक अध्यन के मुताबिक भारत में करीब सात हजार नुक्कड़ नाटक समूह है। इनमे से अधिकांश पश्चिम बंगाल , केरल , आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में है। इसमें शिरकत करने वाले लोगों में सोशल एक्शन ग्रुप , स्वास्थ्य और कृषि प्रसार कर्मी , छात्र समूह , राजनीतिक दल , धार्मिक सुधारक और महिला संगठन रहते है।
नुक्कड़ नाटक का आरम्भ चालीस के दशक में राजनीतिक थिएटर से देखा जा सकता है। इसकी जड़े पारंपरिक नाट्यकला में नहीं है , लेकिन वह भारतीय समन्वयवादी दर्शन का प्रतीक है , जिसके तहत पश्चिम का प्रोसेनियम थिएटर भारत में बखूबी अपनाया गया। आरम्भ में इस पर वामपंथ हावी था। सड़कों पर इसे खेले जाने का अहम कारण यह था कि आम पंच राजनीतिक मामलों से दूर रहते थे। इसके आलावा यह वास्तविक घटनाओं की जीवंत अभिव्यक्ति करता था , जनभाषा का इस्तेमाल करता था और बेहद कम जरूरतों से काम चलाकर आयोजित हो जाता था। 1944 में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के संस्थापक बिजन भट्टाचार्य ने संभवतः पहला नुक्कड़ नाटक 'निबान' खेला , जिसमे जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण को जबरदस्त अभिव्यक्ति दी गयी। राजनीतिक रूप से सक्रिय अन्य दलों ने हाशिये पर पड़े लोगों को अधिकार दिलाने के लिए कई अच्छे नुक्कड़ नाटक खेले। दिल्ली में नुक्कड़ नाटक खेलते समय इष्टा के स्तंभ सफदर हाश्मी की हत्या हो गयी लेकिन इस घटना ने इस कला को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया।
नुक्कड़ नाटक के क्षेत्र में काफी बड़ा नाम है - बादल सरकार। उन्होंने इसे प्रतिबद्धता के थिएटर के तौर पर प्रस्तुत किया। वह ग्रोथोवस्की के पुअर थिएटर आगस्तो बोअल के वंचितों के थिएटर , शीक्नर के पर्यावरण थिएटर से प्रभावित थे। सरकार ने देह भाषा और जनता पर केंद्रित संवादों के क्षेत्र में प्रभावी कार्य किया। यह भी देखा गया कि नुक्कड़ नाटक स्थानीय कलाओं जैसे नृत्य संगीत और स्थानीय भाषा को अपने में समाहित कर लेता है। मिसाल के तौर पर बड़ोदा का नाट्य समूह सहियार गरबा और भवाई का प्रयोग करता है। आंध्र की जन नाट्य मंडली ओगर रथ का प्रयोग करती है।
दिल्ली , मुंबई , ग्रामीण आंध्र , केरल और महाराष्ट्र के नुक्कड़ नाटक समूह महिला , शोषण , गरीबी , भेदभाव अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर ध्यान खींच रहे है। केरल में साक्षरता और वैज्ञानिक सोच के प्रसार में नुक्कड़ नाटक ने अहम भूमिका निभाई है।
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